Add To collaction

दो से चार -05-Jan-2022

भाग 4 




अगले दिन जब वह जगी तो उसने "साहित्यिक एप" खोल कर देखा तो उसमें आज का विषय था "प्रेम पत्र" । बहुत खूबसूरत विषय था । उसने कुछ रचनाएँ पढ़ी । कुछ रचना बहुत अच्छी थी । उसके मन से एक आवाज आई कि इस विषय पर क्या लव कुमार ने कुछ लिखा है ?  उसने खोजना शुरू किया तो उसे लव कुमार की एक रचना मिल गयी ।  हां, उन्होंने अपना एक संस्मरण लिखा है इस विषय पर कि कैसे उन्होंने अपना पहला प्रेम पत्र लिखा था और उसका क्या प्रतिकार मिला था । बहुत खूबसूरती से उन्होंने वह रचना लिखी थी ‌‌। इस रचना में हास्यव्यंग्य भी था, श्रंगार भी था और बहुत सी फिल्मी बातें भी थी । गस रचना को पढ़कर सुबह सुबह उसकी तबीयत प्रसन्न हो गई । उसने तुरत फुरत टिप्पणी कर दी "सर, क्या बात है ? बहुत शानदार प्रेम पत्र लिखा है आपने । ऐसे ही लिखते रहिए " । और वह अपना नित्य कर्म करने चली गई । 


फ्रेश होकर और चाय का कप हाथ में लेकर वह फिर से "साहित्यिक एप" खोलकर बैठ गई। लव कुमार ने उस टिप्पणी का जवाब दिया था । "बहुत बहुत आभार मैम, अगर आपको इतना ही पसंद आया है तो आप कहें तो ऐसी ही एक रचना और लिख देंगे" । लव कुमार का यह जवाब उसे बहुत पसंद आया । टिप्पणी के माध्यम से बातचीत का रास्ता खुल गया था । पता नहीं क्यों उसे उनसे बेतकल्लुफ बातचीत करना अच्छा लग रहा थख । उसने भी तुरंत लिख दिया "सर, अगर मेरे आग्रह पर आप एक और रचना लिखेंगे तो मजा आ जाएगा" । 


पता नहीं क्यों उसका मन बहुत खुश था । उसके चेहरे से प्रसन्नता टपक रही थी । ऐसा लगता था जैसे उसके पांव जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं । पर वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे ऐसा क्यों महसूस हो रहा है ? इसी उधेड़बुन में वह नाश्ता बनाने चली गई। 


नाश्ता करने के बाद वह फिर से "साहित्यिक एप" खोलकर बैठ गई। वह सबसे पहले अपनी टिप्पणी पर यह देखने गयी कि उसकी टिप्पणी का कोई जवाब आयख है या नहीं ? मगर उसकी टिप्पणी पर कोई जवाब नहीं आया था । वह एकदम से निराश हो गई । मन खिन्न हो गया था उसका । पर ऐसा क्यों हो रहा है , वह समझ नहीं पा रही थी । वह क्यों चाहती थी कि लव कुमार उसकी टिप्पणियों का जवाब दें ? उसे लव कुमार में क्यों इतनी दिलचस्पी होने लगी थी ।


वह नहाने चली गई। नहाने के बाद वह अपने भगवान "शिवजी" की पूजा करती थी । आज उसका मन पूजा में भी नहीं लग रहा था । लेकिन पूजा तो करनी ही थी इसलिए पूरी की । अब वह थोड़ी देर के लिए फ्री थी । वह नव्या के बच्चों को लेकर पढ़ाने बैठी । पर पढ़ाने में मन नहीं लग रहा था उसका । बच्चों को होमवर्क देकर वह फिर से "साहित्यिक एप" पर चली गई। लव कुमार का कोई कमेंट नहीं था । उसके होंठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई। वह क्यों चाहती है कि कोई उसकी टिप्पणियों पर टिप्पणी करे ? पर इसका जवाब उसे नहीं मिला । वह कोई "शेर" लिखने बैठ गई। उसे शेरो शायरी का बहुत शौक था । उन दिनों वह लिख भी रही थी । उसने एक शेर लिखने के लिए एप खोला ही था कि उसके पुराने शेर पर लव कुमार जी की टिप्पणी अंकित थी "वाह वाह! बहुत खूबसूरत शायरी । ऐसे ही मस्त लिखते रहिए" । आशा खुश हो गई। उसका शेर लव कुमार जैसे बड़े लेखक को पसंद आया , यह उसके लिए बड़े सौभाग्य की बात थी । उसने जवाब में लिख दिया "सर, आपको यह शेर पसंद आया इसके लिए बहुत बहुत आभार। आप लिखने में मेरा मार्गदर्शन कीजिए न । क्या आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे" ? 


उसने यह लिख तो दिया लेकिन बाद में उसे लगा कि भावनाओं के वशीभूत उसने ऐसा लिख दिया है । पर क्या यह सही है " ? पता नहीं सर क्या सोचेंगे" ? 


वह इसी उधेड़बुन में लगी रही । उसने अपनी टिप्पणी हटा ली थी । वह थोड़ी शांत हुई तो उसे लगा कि उसने क्या ग़लत लिखा है ? कोई ऐसी वैसी बात तो नहीं लिखी थी उसने" ? 


वह अपना घर का काम करने लगी । दोपहर तीन बजे के बाद वह फ्री हुई । उसने फिर "साहित्यिक एप" खोला तो पाया कि लव कुमार जी ने एक और " प्रेम-पत्र " लिख रखा है । वह जल्दी से उसे पढ़ने लगी । 


मेरी जाने जाना , मेरी दुनिया


तुमसे ही शुरू है तुमपे ही है खत्म 


तुम तो हो मेरी हर ग़ज़ल की नज़्म


होंठों के गुलाब से महक रहा गुलशन


आंखों से टपकती है नशे की पूरी बज़्म 


जबसे देखा है तुमको ना दिन में चैन ना रातों में है करार 


बस, तुम्ही को देखने को रहता है ये दिल हरदम बेकरार


मजनूं सा बन गया हूं सूना सूना सा लगता है ये संसार 


मुझे नहीं पता था कि इतना खतरनाक भी होता है ये प्यार 


तुम्हारे पत्र ने मेरी प्यास और बढ़ा दी है । पता नहीं कितनी बार पढ़ चुके हैं । अब तो एक एक अक्षर रट गया है फिर भी दिल है कि मानता नहीं । इस पत्र में मुझे तुम्हारा चेहरा दिखता है । दिल समझता है कि तुम मेरे पास ही हो , एकदम पास । इतने पास कि तुम्हारी धड़कनें भी महसूस होती है । हर सांस जैसे कह रही हो कि टीना , तुम्हारे बिना भी क्या है जीना । अब तो एक पल की भी जुदाई बर्दाश्त नहीं होती है । काश, हम दोनों साथ होते । पता नहीं वो दिन कब आएगा जब हम दोनों एक साथ रहेंगे । तब हम तुम्हें इतना प्यार करेंगे कि प्यार भी सोच में पड़ जाएगा कि इस जोड़े को छोड़कर और कहीं जाना भी है या यहीं स्थाई रूप से  रह जाना है । 


वैसे तो नींद आती नहीं मगर जब भी आती है तो ख़्वाबों में भी तुम ही आती हो । इतनी जालिम ना बनो । कम से कम ख्वाबों में आकर तो सताना छोड़ दो । जबसे तुम्हारी आंखों के जाम पिए हैं, प्यास ही खत्म हो गई है । कुछ और पीने की इच्छा ही नहीं है । बस, उसी जाम की प्यास है । फिर कब पिला रही हो  अपनी आंखों से जाम ? अपने होंठों का शहद कब चखा रही हो हमें ? बोलो ,  बोलो ना ! कहीं ऐसा ना हो कि इंतजार में ही ये जिंदगी खत्म हो जाए । 


ये दूरी बड़ी लंबी है सनम 


मजबूरी बहुत बड़ी है जानम 


हमारे तुम्हारे मिलन के लिए


शायद लेना होगा एक और जनम ।‌‌


तुम्हारे इंतज़ार में 


इस प्रेम-पत्र को पढ़कर आशा को बहुत अच्छा लगा । उसे ऐसा लगा जैसे कि यह प्रेम पत्र उसी के लिए लिखा गया है । वह इसे कितनी बार पढ़ गई , उसे खुद पता नहीं । बस, पढ़ती ही जा रही थी । जी तो चाहता था कि वह बहुत कुछ लिखे मगर कुछ लिख नहीं सकती थी सिवाय टिप्पणी के । पर टिप्पणी भी लिखे तो क्या लिखे ? वह सोचती रह गई। 




   10
4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:28 PM

बहुत सुंदर भाग

Reply

Shalu

07-Jan-2022 02:04 PM

Good

Reply

Rohan Nanda

05-Jan-2022 06:34 PM

Age kya...? Achche andaj me likhi rachna h ye

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Jan-2022 06:49 PM

धन्यवाद जी

Reply